रुकी-रुकी सी साँसें आ रही हैं इस कदर..
मरा-मरा सा कोई जी रहा हो जैंसे।
अनवरत अश़्क यूं आँख से बह गये..
समन्दर में सुराख़ हुआ हो जैंसे।
मेरी बातों से धुआँ सा उठता है क्यों..
मेरे भीतर कोई शख़्स राख़ हुआ हो जैंसे।
रुकी-रुकी सी साँसें आ रही हैं इस कदर..
मरा-मरा सा कोई जी रहा हो जैंसे।
अनवरत अश़्क यूं आँख से बह गये..
समन्दर में सुराख़ हुआ हो जैंसे।
मेरी बातों से धुआँ सा उठता है क्यों..
मेरे भीतर कोई शख़्स राख़ हुआ हो जैंसे।