घुमक्कड़ी

मैख्व़ार मैं,जरा अलग हूँ… एक शराब,बूंद-बूंद मिलकर बरसती है मिरे पैमाने में…समन्दर हो जाती है..मैं उसके नशे में चूर रहता हूँ। मैं सस्ती,मस्ती नहीं पीता..मेरी मस्ती, परम का प्रसाद है,जिसके खजाने प्रकृति मे सरेआम बिखरे पडे हैं। मेरी यायावरी मुझे उन तक पहुँचाती है…इक नया कलेवर मुझे ओढ़ाती है..घुमक्कड़ी मेरी फितरत में शामिल है..तो चल पड़ता हूँ जहाँ कदम ले चलें।

                बूंद का समन्दर हो जाना..महबूब से मिलन का एहसास..कुछ ऐसे ही आनन्द भरे अनुभव घुमक्कड़ी ने कई बार दिए हैं मुझे..जिसकी बदौलत पूरी जिन्दगी ही रूमानियत से तर-बतर हो गयी है। ‘आजकल शहज़ाद का रुख किस तरफ है, छलक उठी अंतर्मन में,बब्लीधार की जूली,ऋतम्भरा’… ऐसे अनेक काव्य और गद्यों से यायावरी ने समृद्ध किया है मुझे।

                उपर्युक्‍त तस्वीर के सन्दर्भ में यदि बात करें तो, मिलम ग्लेशियर की बेहद खतरनाक,खूबसूरत रोमांचकारी, और यादगार यात्रा के दौरान कई ऐसे पडाव देखे,जहाँ बस ठहर जाने का मन हुआ.. मुनस्यारी का ‘मैसर कुंड’ अपनी मनोरम नैसर्गिक अदाओं  से किसी को भी वशीभूत करने में समर्थ है। इस कुंड के किनारे चिरकाल तक स्वयं को समाधिस्थ कर लेने के खयाल ने हिलोरते चित्त को ठहराव दिया था।

                घुमक्कड़ी, प्रकृति के दैवीय साम्राज्य से तो परिचय कराती है साथ ही अंतरतम की गहराइयों में ले जाकर व्यक्तित्व में अनूठा निखार ले आती है। तो फिर रसिक बनिए, यायावर बनिए प्रकृति के और जीवन को इक नया भरपूर ऊर्जायुक्त,आनन्दपूर्ण आयाम दीजिए। खुशहाल रहिए।

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