कुमाऊँ का नाम कुमाऊँ क्यों पड़ा ?

Why Kumaun is called Kumaun?? पण्डित बद्रीदत्त पांडेय अपनी किताब कुमाऊँ का इतिहास में लिखते हैं कि कुमाऊँ का नाम कुमाऊँ पड़ने में विभिन्न बातें प्रचलित हैं। सबसे पहली तो यह है कि कुमाऊँ को पहले कूर्माचल के नाम से जाना जाता था।

इसका कारण यह था कि जब भगवान विष्णु का कूर्म अथवा कछवे का अवतार हुआ तो वह अवतार कहा जाता है कि चम्पावती नदी के पूर्व में कूर्म पर्वत जिसे आजकल कंदादेव या कानदेव कहते हैं वहाँ वह तीन वर्ष तक खड़े रहे। उस कछवे के पैरों के चिन्ह उस पर्वत पर अंकित हो गए और वहां विद्यमान हो गए। तब से उस पर्वत का नाम कूर्माचल हो गया (कूर्म + अचल)।

फिर बाद में कूर्माचल का कुमु और कुमु का कुमाऊँ हो गया। किसी जमाने में यह नाम चम्पावत और उसके आसपास के गावों को दिया जाता था। उसके बाद यह काली नदी के किनारे के सारे क्षेत्रों को दिया जाने लगा।

बाद में जब चंद राजाओं के राज्य का विस्तार हुआ तो उस समय के अल्मोड़ा और नैनीताल के सारे क्षेत्र का नाम भी कुमाऊँ हो गया। अंग्रेजी राज्य में कभी देहरादून भी कुमाऊँ राज्य का हिस्सा हुआ करता था। चंद राजाओं ने इस नाम को प्रशिद्ध किया।

हिमालय भ्रमण किताब के अनुसार:

किन्तु श्री जोध सिंघ नेगी अपनी किताब हिमालय भ्रमण में  लिखते हैं की कुमाऊँ के लोग खेती व धन कमाने में माहिर हैं और बड़े कमाऊ हैं इसलिए उन्हें कुमाऊनी कहा जाता है।

और यह भी वह बोलते हैं की काली नदी के पास वाले काली कुमाऊँ का नाम यह काली नदी के कारण नहीं बल्कि वहां के राजा कल्लू तड़ागी के नाम पे पड़ा।

वह आगे लिखते हैं की देवदार और बांझ की घनी काली झाडियां भी काली नदी के आसपास के क्षेत्रों में बहुत पाई जाती है इसलिए भी इसे काली कुमाऊँ कहा जाता था।

चंद राजाओं के समय कुमाऊँ के तीन शासन मंडल थे।

१. काली कुमाऊँ: जिसमे काली कुमाऊँ के साथ सोर, सिरा और अस्कोट भी शामिल थे।

२. अल्मोड़ा: जिसमे सालम  बारामंडल और उस समय नैनीताल के कुछ इलाके थे।

३. तराई भाभर का इलाका

ये उस समय की बात है जब चंद वंश खूब फैला हुआ था।

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