नदी का एक छोर

नदी का एक छोर सुहाना,
याद दिलाता है एक अफसाना,
धुमिल होती कुछ यादें पुरानी और वो तुम्हारा शर्माना,
हाँथ पकड़ना और मंद-मंद मुस्काना,
जैसे दोहरा रहे हो, बचपन का वो समय पुराना,

हम आज भी खिचे चले आते है इस डगर,
चाहे साथ नहीं अब तुम्हारा,
संजो कर रखते है इन लहरों को अक्सर,
और इन सौम्य छीटों को,
जो नेत्रों से बहते, अश्रु रुपित झरने को धुंदला कर जाते है कभी,

याद करो, खत लिखो,
या ज़िकर करो कभी हमारा,
थोड़ा अदब से,
थोड़ा प्यार से,
एक कोना दो अपने हृदय में कहीं,

प्यासे है स्नेह के,
थोड़ा मधुरस बरसाओ कभी,
याद करो तो हमारे हस्ते हुए चेहरे को करना,
क्यूंकि पहाड़ो में रहकर,
टूटना तो हमने, कभी सीखा नहीं I

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