सफर करना किसको पसंद नहीं है, नयी जगह में जाना, नए लोगो से मिलना, नयी भाषा, नयी परंपरा और भी बहुत कुछ देखने व समझने को मिलता है और अगर बात पवित्र यात्रा की हो तो आप समझ ही गए होंगे कि पवित्र यात्रा से मेरा मतलब परमात्मा के द्वार तक पहुंचने से है। जी हाँ ऐसी पवित्र यात्रा जो दिल्ली से केदारनाथ धाम तक मेरे द्वारा की गयी। इस यात्रा के दौरान मेरे द्वारा प्राप्त किये गए अनुभवों को आपके सामने प्रस्तुत करने की मेरी यह छोटी सी कोशिस है।
बात दिनांक 22 जून 2019 की है; रात के 9 बज रहे हैं और मैं केदारनाथ धाम जाने के लिए तैयार हूँ, दिल्ली का कश्मीरी गेट बस स्टेशन चारो तरफ से जगमगा रहा है। मैंने अपना बैकपैक पीठ मे लगाया हुआ है और तभी मेरी नजर हरिद्वार की बस की तरफ गयी। चूंकि केदारनाथ जाने के लिए हरिद्वार से होकर जाना पड़ता है अगर आप दिल्ली में हैं तो। मैं बस में गया और सीट में बैठ गया। थोड़ी देर में बस चलनी शुरू हुई। जैसे ही बस चली वैसे ही मेरी केदारनाथ यात्रा कि शुरुवात हुई। दिमाग में बहुत सी चीजें चल रही थी जैसे कि कब वो समय आएगा जब मैं केदारनाथ में हूँगा, केदारनाथ जगह दिखने में कैसी होगी, मेरा सफर कैसा होगा और भी बहुत कुछ। ये सब सोचते सोचते मैं सो गया। सुबह के 3 बज रहे थे और मेरी नींद खुल गयी। सुबह 4 बजे मैं हरिद्वार बस स्टेशन पहुंच गया। यहाँ से मुझे दूसरी बस में जाना था जो कि गुप्तकाशी या गौरीकुंड जाती है। केदारनाथ यात्रा का अंतिम पड़ाव गौरीकुंड ही है जिसके बाद हमे पैदल ही दूरी तय करनी पड़ती है।
चूंकि केदारनाथ जाने वाली बस या यूँ कहें कि गुप्तकाशी/गौरीकुंड जाने वाली बस सुबह 6-7 बजे तक ही चलती है। मैं गुप्तकाशी जाने वाली बस में बैठ गया। सुबह 5 बजे बस चलनी शुरू हुई। सुबह के समय हल्का अँधेरा था तो मैं हरिद्वार को अच्छी तरह से देख नहीं पाया। सुबह 6:30 बजे मैं ऋषिकेश पहुंच गया। ऋषिकेश में घूमने का बहुत मन था लेकिंन अभी तो केदारनाथ बाबा के दर्शन करने आ रखा था। बस ऋषिकेश से भी चलनी शुरू हुई। रास्ते में शिवपुरी, ब्यासी और तीनधारा नाम की जगह से होकर मैं गुजरा। माँ गंगा के किनारे से होकर बस गुजर रही थी जो कि बहुत अद्भुत दृश्य था। बस तीनधारा में लगभग 10 बजे पहुंची और कुछ देर रुकी। यहाँ पर सभी ने खाना खाया। तीनधारा मे ज्यादा गर्मी नहीं थी हल्की ठण्ड सी थी। आधे घंटे बाद बस चलनी शुरू हुई।
तीनधारा के बाद रास्ते में देवप्रयाग नाम की जगह आयी। देवप्रयाग में अलकनंदा नदी और भागीरथी नदी का संगम देखने लायक था जहां से यह माँ गंगा के नाम से जानी जाती है। इसके बाद श्रीनगर, रुद्रप्रयाग नाम की जगह से होकर मैं गुजरा। रुद्रप्रयाग बस दिन के 1:30 बजे पहुंची। रुद्रप्रयाग से बाद में मौसम थोड़ा सुहावना होना शुरू हो गया था। इसके बाद अगस्त्यमुनि नाम की जगह से होकर गुजरते हुए मैं दिन के 3:30 बजे गुप्तकाशी पहुंच गया। मैंने आज रात यही रुकने का निर्णय लिया।
अगली सुबह 4 बजे मैं गौरीकुंड तक गाडी से निकल गया। गौरीकुंड पहुंचने के बाद मुझे पैदल ही दूरी तय करनी थी। यहाँ से जंगल चट्टी, भीमबली, लिंचौली से होते हुए लगभग 22 किलोमीटर की दूरी तय करके मैं केदारनाथ धाम में पहुंच गया। यहां भक्तो की भीड़ देखने लायक थी। चारो तरफ शिव और भोले के स्वरों से वातावरण शुद्ध हो रहा था। यहाँ पर मुझे एक अलग ही शांति का अनुभव हुआ मानो समय की रफ़्तार धीमी हो गयी हो या रुक सी गयी हो। केदारनाथ भगवान् के दर्शन के बाद मैंने भैरव नाथ भगवान् के भी दर्शन किये। इसके बाद मैं वापिस गुप्तकाशी आ गया। तो इस तरह मेरी केदारनाथ की यात्रा पूरी हुई। आप अपनी जिंदगी में एक बार यहाँ जरूर आईये आपको एक असीम शांति का अनुभव होगा और दिल को परमानंद प्राप्त होगा।
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