मेरी रूहानी महोब्बतों की कहकशां

मेरी रूहानी महोब्बतों की कहकशां से गुजरो कभी,
तुम्हारी रुह को अपना ना बना लूँ तो कहना।
कभी सर-ए-अंजुमन,नूर-ए-जहाँ! मुख़ातिब जो हो जाओ,
तुम्हें रश्क़-ए-कमर ऐलान ना कर दूँ तो कहना।
कहीं दरख्त-ए-गुलमोहर की छाँव में,बाँहों में बाँह लिये मिलो कभी,
इज़हार-ए-महोब्बत मेरे यार ना कर दूँ तो कहना।
तुमने पूछा है! नग्मों में घुले इज़हार की वज़ह क्या है,
तुमको बाँहों में लेकर थरथराते होंठों से,प्यार को प्यार ना कह दूँ तो कहना। 

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